लोक रंगमंच और आधुनिक रंगमंच
भारत में नाटक और रंगमंच के उदय या उसकी शुरुआत में , विद्वान आर्येतर सभ्यता और संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान मानते हैं।
ऋग्वेद संस्कृत का सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रंथ है जिसमे संगीत, वास्तु, नृत्य, काव्य, आदि का उल्लेख है किंतु एक कला के रूप में नाट्य कला का कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन संस्कृत साहित्य में देखा जाए तो हमारी नाट्य परंपरा बहुत पुरानी है।
लोक रंग:
लोक रंग एक पारंपरिक रंगमंच कला है जो भारतीय ग्रामीण संस्कृति को दर्शाती है। यह प्राकृतिक रूप से उभरती है और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्ति-व्यक्ति के माध्यम से प्रदर्शित की जाती है। इसमें भारतीय जनसंख्या के जीवन, संस्कृति, धार्मिक अनुभव, राजनीतिक विवाद और सामाजिक मुद्दों पर विचार किया जाता है। लोक रंग के प्रमुख आयाम नाटक, नृत्य, संगीत, भजन, कविता, कहानी आदि हैं। इसमें कई जातियों के नृत्य-गीत, बोलचाल, वेशभूषा और प्रदर्शन कलाएं शामिल होती हैं। लोक रंग जनसाधारण के जीवन की कठिनाइयों, आनंदों, आशाओं और आस्थाओं को प्रकट करता है।
आधुनिक रंगमंच:
आधुनिक रंगमंच विशेष रूप से नगरीय क्षेत्रों में विकसित हुआ है और पश्चिमी नाट्य परंपराओं और प्रदर्शन कलाओं पर आधारित है। इसमें नाटक, अभिनय, संगीत, नृत्य, लाइटिंग, सेट डिजाइन, कॉस्ट्यूम डिजाइन और तकनीकी प्रभाव शामिल होते हैं। आधुनिक रंगमंच अर्थ केंद्रित होने के कारण एक्सपेरिमेंटल हो चुका है, जिसके विषय बहुत व्यापक हैं। आधुनिक रंगमंच में विभिन्न विषयों पर नाटक और प्रदर्शन की जाती है, जो वर्तमान समाज, राजनीतिक मुद्दे, आधुनिकता, और मानवीय अनुभव पर विचार करती हैं। आधुनिक रंगमंच में पेश किये जाने वाले नाटक और प्रदर्शन वर्तमान मनुष्य की अपनी समस्या उसके अकेलेपन, उसके मानसिक चित्त पर केंद्रित होते हैं।
भारत में नाटक परंपरा
- संस्कृत नाटक
- संस्कृतोत्तर नाटक
- आधुनिक नाटक
- स्वातंत्र्योत्तर भारतीय नाटक
इस प्रकार, लोक रंग और आधुनिक रंगमंच दो भिन्न कला रूप हैं, जो विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभावों के अनुसार विकसित हुए हैं। दोनों शैलियों का महत्वपूर्ण संबंध उन्हें विभिन्न कार्यों के माध्यम से समाज में स्थान देने में होता है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग इन्हें आनंद ले सकें और रंगमंच की संवृद्धि कर सकें।
आधुनिक भारतीय रंगमंच
- पारसी रंगमंच
- अभिजात्य रंगमंच
- जनोन्मुखी रंगमंच
विभिन्न नाट्य शैलियां
- पाश्चात्य नाट्य शैली
- संस्कृत नाट्य शैली
- लोक नाट्य शैली
अन्य नाट्य शैली
- रेडियो रूपक
भारत में रंगमंच की अति प्राचीन परंपरा है। संस्कृत नाटकों से चलते हुए वर्तमान में आधुनिक परंपरा के नाटकों तक विकास की एक पूर्ण प्रकिया चली है।
ग्रीक नाटकों की तरह संस्कृत में नाट्य लेखन और रंगमंच संबंधी नियमों का अपूर्व विकास हुआ है।
भरत मुनि का नाट्यशास्त्र ग्रंथ और कालिदास जैसे महान नाटककार भारतीय रंगमंच के शीर्ष पर हैं।
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